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को अरबी-र्ारसी की तुलना में प्रािममकता देनी चाहहए।’’13 संवििान ममतज्ञ
आर.बी. िुलेकर ने कहा है कक ‘‘क ु छ लोग कहते हैं कक हहन्दी भाषा के साि
ररयायत की गई है ककन्तु मैं समझता हाँ कक यह बात नहीं है। यह एक
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ऐततहामसक प्रकिया के पररर्ामथिऱूप ही हआ है जो कई िषों से, िाथति में
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कई शतास्ब्दयों से प्रिततन में रही है। मैं तनिेदन करता हाँ कक थिामी रामदास ने
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हहन्दी में मलखा, तुलसीदास ने हहन्दी मं मलखा और आिुतनक काल के संत
थिामी दयानंद ने हहन्दी में मलखा। िे गुजराती िे ककन्तु मलखते िे हहन्दी में।
िे हहन्दी में क्यों मलखते िे ? इस कारर् कक इस देश की राष्रभाषा हहन्दी िी।
इसके अततररक्त मैं तनिेदन करता हाँ कक राष्रवपता महात्मा गााँिी ने जब
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कांग्रेस में प्रिेश ककया तो उन्होंने तुरन्त ही अंग्रेजी भाषा छोड दी और हहन्दी में
बोलने लगे। उन्होंने अंग्रेजी में मलखने का प्रयास नहीं ककया।’’14
अनेक विद्िानों ने हहन्दी प्रचार के उपाय पर गम्भीरतापूितक विचार ककया
है। हहन्दी के प्रचार-प्रसार से भारत की पहचान को दृढता ममलेगी। लोकमान्य
ततलक का किन है कक ‘‘हहन्दी राष्रभाषा बनने योग्य है, यह बात सत्य है पर
जब तक हहन्दी भाषा-भाषी लोगों में देशभस्क्त की तीव्र ज्योतत प्रज्िमलत नहीं
होगी, तब तक हहन्दी भाषा में तेज का संचार नहीं होगा। जब हहन्दी प्रेममयों में
खुशामद खोरी या चापलूसी की िृस्त्त का त्याग कर देश के कोने-कोने में नया
संदेश पहाँचाने की उत्कट अमभलाषा उत्पन्न होगी, तभी हहन्दी भाषा समृधॎध
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होगी।’’15 हहन्दी के प्रचार-प्रसार के मलए अहहन्दी भावषयों ने भी बहत श्रम
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ककया िा। उसे आज और आगे बढाने की जरुरत है। सुनीत क ु मार चटजी ने
कहा है कक-‘‘यों 1867 में बंगाल में के शिचन्र सेन ने अपने समाचारपत्र में
हहन्दी ही अखखल भारत की जातीय भाषा या राष्रभाषा बनने के योग्य है’, इस
विषय पर तनबंि मलखा। 1882 में राजनारायर् बोस ने और 1886 में भूदेि
मुकजी ने भी भारत को एक जातीयता के सूत्र में बांिने के मलए हहन्दी की
उपयोधगता के विषय पर विचार-समुज्ज्िल िकालत की। सन ् 1905 से जब
बंगाल में बंग-भंग के बाद थिदेशी आन्दोलन का प्रारम्भ हआ, स्जसके साि
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हमारे थिािीनता संग्राम की नींि डाली गई, उस समय काली प्रसन्न काव्य
विशारद जैसे बंगाली नेताओं ने हहन्दी के पक्ष में प्रयत्न ककया, स्जससे हहन्दी के
सहारे जनता में राष्रीय थिािीनता के मलए आकांक्षा र्ै ल जाए।’’16