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करते हैं कक िे इथलाम नहीं, ईरानी संथक ृ तत के  गुलाम हैं। भारतीय संवििान के

               अनुच्छेद 351 का किन है कक हहन्दी-भाषा की शब्द सम्पदा को समृधॎध करने

               के   मलए  प्रमुख  ऱूप  से  संथक ृ त-भाषा  का  आश्रय  ग्रहर्  करना  चाहहए।  संथक ृ त

               भारतीय पररिेश के  सितिा अनुऱूप है। डॉ0 रामविलास शमात का किन है कक-

               ‘‘उदूत में जो संथक ृ त शब्दों से परहेज है, उसे कम होना है। भारत की भाषाओं के

               मलए अरबी, र्ारसी का िही महत्ि नहीं है जो संथक ृ त का है। व्याकरर् और

               मूल शब्द भण्डार की दृस्ष्ट उदूत से संथक ृ त पररिार की भाषा है, न कक अरबी

               पररिार की। इसमलए अरबी से पाररभावषक शब्द लेने की नीतत गलत है, के िल

               अरबी से शब्द लेने और संथक ृ त शब्दों को मतऱूक समझने की नीतत और भी
               गलत  है।  भारत  की  सभी  भाषाएाँ  प्रायः  संथक ृ त  के   आिार  पर  पाररभावषक


               शब्दािली बनाती है। उदूत इन सब भाषाओं से न्यारी रह कर अपनी उन्नतत नहीं
               कर सकती।3



                       अपनी भाषा में जो सहजता, सरलता और तरलता है िह अन्यत्र नहीं।

               अज्ञेय का किन है कक- ककसी भी समाज को अतनिायततः अपनी भाषा में ही

               जीना होगा, नहीं तो उसकी अस्थमता क ुं हठत होगी ही होगी और उसमें आत्म-

               बहहष्कार या अजनत्रबयत के  विचार प्रकट होंगे ही।4 हहन्दी भाषा के  उद्भि एिं

               विकास पर प्रकाश डालते हए प्रो0 करुर्ाशंकर उपाध्याय मलखते हैं कक-‘‘दरअसल
                                              ु
               हहन्दी का इततहास िैहदक काल से ही प्रारम्भ होता है। िैहदक का साहहत्य ऱूप

               ऋग्िेद है। इसे लौककक से मभन्न तिा पूितिती शाखा माना जाता है। भारतीय

               परम्परा के  अनुसार िैहदक संहहताएाँ अपौरुषेय हैं। ये मूलतः छन्दों में तनममतत हैं।

               इसमलए इस भाषा को छांदथय अििा िैहदक कहते हैं। लौककक संथक ृ त में छन्द

               का सितप्रिम प्रयोग महवषत िाकमीकक ने अपने ग्रन्ि ‘रामायर्’ में ककया। यही
               कारर्  है  कक  इस  ग्रन्ि  को  आहदकाव्य  की  संज्ञा  दी  गयी  है।  संथक ृ त  के


               समानान्तर बोलचाल की लोकभाषा के  ऱूप में प्राक ृ त का विकास हआ, स्जसका
                                                                                            ु
               पूितिती ऱूप पामल तिा उत्तरिती ऱूप अपभ्रंश के  नाम से जाना जाता है। इसी

               अपभ्रंश से समथत आिुतनक भारतीय आय भाषाओं का विकास हआ है। हहन्दी
                                                                                           ु
               उससे विकमसत होने िाली सबसे प्रभािी एिं बडी भाषा का नाम है। यह मूलतः

               र्ारसी शब्द है। जहााँ तक व्याकरर् का सिाल है तो ‘हहन्दी’ शब्द ‘हहन्द’ का

               विशेषर् है स्जसका आशय है- ‘हहन्द का’।5
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