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गुलाब  भी  तो  कॉटों  में  ही  खखलता  है।  हमें  हहन्दी  ऱूपी  गुलाब  की  सुगंन्ि

               विश्िथतर  पर  र्ै लाने  के   मलए  पररश्रम  करना  ही  पडेगा।  जन-भाषा  हहन्दी  के

               समक्ष खडी चुनौततयों से टकराकर उन्हें चूर-चूर करना ही पडेगा। प्रसाद जी की

               अग्रमलखखत पंस्क्तयों की लक्ष्य बनाना ही पडेगा।



               इस पि का उद्देश्य नही है श्रान्त भिन में हटका रहना।


               ककन्तु पहंचना उस सीमा तक स्जसके  आगे राह नहीं।।
                          ु

                                                                                    मु0 पटेलपगर पो0 कादीपुर


                                                                                स्ज0 सुलतानपुर उ0प्र0 228145



               सन्दभत



               1.      महात्मा गांिी (हहन्दी निजीिन 7-11-1929)



               2.      शमात रामविलास, भाषा और समाज पृ0 326


               3.      शमात रामविलास, भाषा और समाज पृ0 332



               4.      अज्ञेय-अद्यतन पृ0 24



               5.      उपाध्याय (डााँ) करुर्ाशंकर, हहन्दी का विश्ि सन्दभत पृ0 29 (रािाक ृ ष्र्

               प्रकाशन, नई हदकली)


               6.      द्वििेदी-हजारीप्रसाद (अशोक के  र् ू ल,पृ0 47-48



               7.      अज्ञेय-सस्च्चदानन्द िात्थयायन-अद्यतन।



               8.      ठाक ु र-रिीन्रनाि रिीन्र साहहत्य :भाग 24’चयन’ तनबन्ि,पृ0 128



               9.      मुंशी  कन्हैयालाल  मखर्कालाल  (थपाक्सत  फ्राम  ए  गिनतसत  एस्न्िल,  खंड
               1,पृ0 80)



               10.  मुंशी क0 मा0 भारतीय हहन्दी पररषद के  खुले अधििेशन के  समापतत पद

               से भाषर् 1953
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