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में ‘अभ्युदय’ नामक साप्ताहहक पत्र, 1926 में ‘भारत’ और ‘हहंदुस्तान’
नामक दैतनक पत्र प्रकामशत कर हहंदी की सेिा की।
काशी से प्रकामशत ‘िनातन धमष’ और लाहौर से प्रकामशत
‘ववश्वबंधु’ नामक पत्रों के परामशतदाता, प्रेरर्ाश्रोत मालिीय जी ही िे। इन
पत्रों के द्िारा मालिीय जी ने हहंदी प्रचार-प्रसार के मलए सहाहनीय कायत
ककया है जो भारतीय थितंत्रता और हहंदी का इततहास युगों तक थमरर्
रखेगा। मालिीय जी महान थिप्नदशी िे। उनके महत्िाकांक्षा के अनुऱूप 4
र्रिरी 1916 को जब काशी हहंदी ववश्वववद्यालय की थपापना हई तो
ु
उन्होंने मशक्षा का माध्यम हहंदी को रखा परंतु तत्कालीन गिनतर जनरल ने
इसकी इजाजत नहीं दी। अंग्रेजों ने अपने शासन काल में अंग्रेजी के
अततररक्त हहंदी या ककसी भी अन्य भारतीय भाषा को मशक्षा का माध्यम
बनाए जाने का प्रश्रय नहीं हदया। मालिीय जी ने विश्िविद्यालय को दो
भागों में बांट हदया। एक में अंग्रेजी तो दूसरे में हहंदी को मशक्षा का माध्यम
अतनिायत कर हदया। इससे हहंदी भाषी छात्रों की संख्या बढती रही। 1916 में
मुजफ्र्रपुर में आयोस्जत हहंदी प्रचाररर्ी सभा के िावषतक अधििेशन में
मालिीय जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोिन में हहंदी की उपयोधगता और
महत्ता तिा विश्ि की समथत मलवपयों में नागरी मलवप की विमशष्टता,
श्रेष्ठता और सरलता को व्याख्यावपत ककया। उच्च मशक्षा के माध्यम से
अध्ययन-अध्यापन के मलए हहंदी ग्रंिों के प्रकाशन का कायत तेज करने के
मलए उन्होने विश्िविद्यालय में हहंदी प्रकाशन मंिल की थिापना कराई। जब
गांिी जी विश्िविद्यालय में 1927 में पिारे तो उन्होंने इस बात पर खेद
व्यक्त ककया कक विश्िविद्यालय में अंग्रेजी माध्यम से मशक्षा दी जा रही है।
महात्मा गांिी ने इस को दृढता के साि कहा कक हहंदी के द्िारा ऊं ची से
ऊं ची पढाई हो सकती है तब मालिीय जी ने गांिी जी को विश्िास हदलाया
कक ‘’मैं अपने विश्िविद्यालय में हहंदी में उच्च मशक्षा प्रदान कराऊं गा। इसके
मलए सारे आिश्यक संसािन जुटाऊं गा।‘ उस समय हहंदी में पाठ्यपुथतक ें
तैयार कराने के मलए घनश्यामदास त्रबडला ने 5000 रुपए हदए िे। अपने
भाषर् में उन्होंने कहा िा कक सभी मानते हैं कक पढाई का माध्यम
मातृभाषा ही हो परंतु हम पर अंग्रेजी ने ऐसा जादू कर हदया है कक अंग्रेजी
का माह छोड नहीं पा रहे हैं। भविष्य में हहंदुथतान की उन्नतत हहंदी को