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गांधी ने मान ली है मदनी मोहनी िलाह।
हहंदी तो थे ही, अब मदानी हो गए।
गांिी जी द्िारा हहंदी पर अत्यधिक जोर देने के कारर् ही 1976
में इंदौर में आयोस्जत 8वें हहंदी िाहह्य िम्मेलन का उन्हें अध्यक्ष बनाया
गया। गांिी जी के प्रयासों से 1918 में दक्ष्ा भारत हहंदी प्रचार िभा की
थिापना हई। 19-20 अप्रैल 1919 को बंबई में आयोस्जत 9वें हहंदी िाहह्य
ु
िम्मेलन का अध्यक्ष पुन: मालिय जी को बनाया गया। 1925 के बाद हहंदी
और हहंदुथतानी के बीच संघषत बढने लगा। ऐसे समय में मालिीय जी ने
हहंदी का जोरदार समितन ककया। उनका मत िा कक भाषा में ककसी प्रकार की
ममलािट नहीं होनी चाहहए। काशी में आयोस्जत 28वीं अखिल भारतीय हहंदी
िाहह्य िम्मेलन के थिागत भाषर् में उन्होंने कहा िा-हहंदी के मलए यह
सौभाग्य की बात है कक उसके प्रारंमभक काल में महाकवव तुलिीदाि ने
दशाश्वमेघ घाट पर बैठ कर रामचररत मानि(रामाया) की रचना की जो
ववश्व का अद्ववतीय महाकाव्य है। काशी ने ही हहंदी के महान रचनाकारों
जैसे महाकवि जय शंकर प्रसाद, खडी बोली के प्रर्ेता भारतेंदु हररश्चंर तिा
कई कवियों, विद्िानों , लेखकों को पैदा ककया। मालिीय जी ने हहंदी भाषा
के थिऱूप और नागरी मलवप पर ऐततहामसक और महप्िपूर्त भाषर् द्िारा यह
मसधॎध कर हदया कक नागरी मलवप के साि षडयंत्र ककया जा रहा है। गांिी जी
ने मालिीय जी की बहत सारी बातों को माना और जीिन में अपनाया।
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विशेष ऱूप से हहंदी को सरल भाषा के ऱूप में व्यिहार ककए जाने पर बल
हदया और हहंदी के व्यापक थिऱूप को उजागर ककया। मालिीय जी और
गांिी जी एक दूसरे को भई मानते िे और िे’भाई’ के संबोिन द्िारा ही एक
दूसरे को पुकारते िे। हालांकक भाषा और मलवप के प्रयोग पर दोनों में मतभेद
रहे। मालिीय जी बनािटी भाषा के विरोिी िे। िे हहंदी के प्रबल पक्षिर िे।
हहंदी को आगे बढाने में मालिीय जी का अद्वितीय ऐततहामसक योगदान रहा
है। उन्होंने हहंदी को सरकारी तंत्र की भाषा के ऱूप में कायातस्न्ित करने के
मलए साितक कायतिम बनाए। उन्हीं में से बनारस हहंदू विश्िविद्यालय की
थिापना के मलए 1905 में आयोस्जत भारतीय राष्रीय कांग्रेस के मंच से
उन्होंने उद्घोषर्ा की । हहंदी भारत की अस्थमता की पहचान है । िह देश
की जनभाषा है । हहंदी के प्रचार-प्रसार को गतत देने के मलए 1907 में हहंदी