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लघु किा, नाटक, एकांकी, यात्रा वििरर् आहद प्रचुर मात्रा में मलखे जा रहे

                   हैं।  अमभमन्यु  अनत,  रामदेि  िुरंघर,  बीर  सेन,  जागा  मसंह,  थि.  मुनीश्िर

                   लाल  धचंतामखर्,  डा.  हेमराज  सुंदर,  राजहीरामन,  इंरदेि  भोला,  प्रहलाद

                   रामशरर्, थि. श्रीमती नागदान, िनराज शंभु, सूयतदेि सीबोरत आहद िररष्ठ

                   साहहत्यकारों से प्रेररत होकर आज की युिा पीढी हहंदी साहहत्य सृजन से जुडी

                   है।

                            आज आिुतनकता, ग्लोबलाइजेशन, मलबरलाइजेशन और प्रोद्योधगकी

                   के  पररितततत पररदृश्य में हहंदी का प्रयोग भारत में अंग्रेजी की अपेक्षा कम हो

                   रहा  है।  यह  एक  दुखद  स्थितत  है।  इसका  कारर्  उच्च  शासक  िगत  तिा
                   प्रशासतनक पदों पर बैठे अधिकाररयों की अंग्रेजी मानमसकता है। उसका प्रभाि


                   विद्याधितयों पर पड रहा है। प्रौद्योधगकी एिं व्यापाररक प्रबंिन की शैक्षखर्क
                   संथिानों  से  डडग्री  लेकर  नौकररयों  में  लगने  िाले  युिाओं  को  अंग्रेजी

                   मानसकता आिांत ककए हए हैं। इसमलए कक अंग्रेजी को राजी-रोटी से जोड
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                   हदया गया है। उस स्थितत में हहंदी द्वितीय, तृतीय श्रेर्ी में रखे जाने के

                   कारर् संक ु धचत हो गई है। उसका व्यापक प्रचार-प्रसार अिऱूधॎध होता जा रहा

                   है।

                             इसके  मलए हम और हमारी भाषा नीतत स्जम्मेदार हैं। आजादी के

                   70 िषों बाद भी सारे देश में त्रत्रभाषा र्ामूतला लागू नहीं हो पाया। हहंदी को

                   राष्रभाषा का दजात नहीं हदया गया। भारत में धगरजाघरों द्िारा अंग्रेजी के

                   प्रचार-प्रसार में सरकार के  मशक्षा बजट से अधिक अंग्रेजी थक ू लों के  माध्यम

                   से अंग्रेजी मशक्षा के  प्रसार तिा िमातन्तरर् पर खचत ककया जाता है। भारतीय

                   समाज  में  ऐसे  अंग्रेजी  माध्यम  के   थक ू लों  की  भरमार  है  जहां  हम  अपने

                   बच्चों को भती कराने के  मलए भारी चंदा देने की होड करते हैं। अपने बच्चों

                   को अंग्रेजी में बोलते देखकर हमें अधिक प्रसन्नता होती है। इससे भारतीय

                   संथक ृ तत  का  प्रभाि  िीरे-िीरे  ममटता  जा  रहा  है  जो  देश  की  सांसक ृ ततक

                   अस्थमता के  मलए एक बहत बडा खतरा है। यह देखकर दुख होता है कक जहां
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                   हहंदी या मातृभाषा द्िारा बच्चों में संथकार पैदा होता िहीं अंग्रेजी मशक्षा तिा


                   अंग्रेस्जयत रहन सहन को आिुतनकता से बांि हदया गया है। ऐसे में हहंदी
                   और प्रादेशक भाषाओं का महत्ि घट रहा है। भाषा पर लोभलाभी िोट खोरी

                   राजनीतत हािी है। उसमें हहंदी तिा भारतीय भाषाओं को खतरा है। स्जसके
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