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प्रयुक्त होने लगती है तो िह राष्रभाषा और राजभाषा के ऱूप में जन्म लेती है।
अमेररकन भाषाविज्ञानी जोशुआ कर्शमैन ने राष्रभाषा और राजभाषा के संदभत
में nationalism (राष्रीयता) और nationalism (राष्रता अििा रास्ष्रकता) की
संककपना प्रथतुत की है । राजभाषा का संबंि रास्ष्रकता (nationalism) से
रहता है जो राष्र की आधितक प्रगतत, राजनैततक एकता और प्रशासतनक
प्रयोजनों की पूततत के मलए काम करती है । यह सरकारी कामकाज में प्रयुक्त हो
कर जनता तिा शासन के बीच संपकत पैदा करती है । राष्रभाषा का संबंि
राष्रीयता (nationalism) से रहता है, क्योंकक राष्रीयता जातीय प्रमाखर्कता एिं
राष्रीय चेतना से जुडी होती है । राष्रीय चेतना का संबंि सामास्जक-सांथक ृ ततक
चेतना से होता है । इसका संबंि भूत और िततमान के साि होता है तिा महान
परंपरा के साि जुडा रहता है । िथतुतः राष्रभाषा राष्र के समाज और संथक ृ तत
के साि तादात्म्य थिावपत करती है तिा सामास्जक-सांथक ृ ततक अस्थमता की
भाषा की अमभव्यस्क्त के ऱूप में कायत करती है । यह भाषा जनता की तनजी,
सहज और विश्िासमयी भाषा बन जाती है स्जसका प्रयोग राष्रपरक कायों में
चलता रहता है । इसीमलए राष्रभाषा का अपने देश की भाषा होना अतनिायत है,
कक ं तु राजभाषा के मलए अपने देश की भाषा होना आिश्यक नहीं । देश के बाहर
की भाषा राजभाषा तो हो सकती है, कक ं तु राष्रभाषा नहीं । इस प्रकार राष्रभाषा
िही होती है स्जसमें राष्रीय प्रिृततयां सस्न्नहहत होती हैं, अपने देश की परंपरा
के प्रतत प्रेम होता है, राष्र की संथक ृ तत के प्रतत लगाि होता है और राष्र की
एकता के प्रतत भािनाएं होती हैं । अमेररका के सुविख्यात विद्िान र्ग्युसतन के
मतानुसार देश का भाषा तनयोजन करते हए राष्रीय एकता, राष्रीय अस्थमता,
ु
आिुतनक समाज, प्रौद्योधगकी और अंतरातष्रीय संबंि में से कम-से-कम तीन
लक्ष्यों को ध्यान में रखना आिश्यक होता है । ये विशेषताएं अपने देश की
भाषाओं में ही ममल सकती हैं, विदेशी भाषा में नहीं । इसके अततररक्त
राष्रभाषा के संदभत में यह कहना भी उधचत होगा कक स्जस भाषा में राष्र-तनष्ठा
और राष्रीय भािना नहीं होती, िह राष्र भाषा कहलाने की अधिकारी नहीं
होती।
प्रश्न उठता है कक हहंदी में ऐसी कौन-सी विशेषता है स्जसके कारर् उसे
राष्रभाषा माना जा सकता है । साहहस्त्यक समृवधॎध की दृस्ष्ट से हहंदी का
साहहत्य श्रेष्ठ है। विश्ि के अनेक विद्िानों ने हहंदी साहहत्य की कविता,