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भारतिषत पर लागू हो जाए तो हहंदी सामास्जक और भािात्मक एकता के मलए
राष्रभाषा का कायत कर सकती है और यहद भारत राष्र को अन्य राष्रों का संघ
या समूह माना जाए तो अन्य भारतीय भाषाएं राष्रभाषा के ऱूप में कायत करेंगी
। लेककन यह प्रश्न उठना भी थिाभाविक है कक संवििान में थपष्ट ऱूप से हहंदी
को राष्रभाषा क्यों नहीं मान मलया गया, जब कक प्रतीक के ऱूप में राष्र का
एक ििज, एक गान, एक पक्षी, एक पशु और एक पुष्प तनिातररत हो सकता है
तो एक भाषा क्यों नहीं । यह सही है कक बहभाषी देश में हर भाषा अपने
ु
समाज की सामास्जक-सांथक ृ ततक मनोगत अस्थमता से जुडी होती है, लेककन यह
भी सत्य है कक देश की राष्रीय अस्थमता, अखंडता और एकीकरर् के साि-साि
हहंदी के प्रतत जन मानस की भािना को भी समझना होगा । हहंदी को संघ की
राजभाषा घोवषत करने का यह अमभप्राय नहीं है कक यह भाषा अन्य भारतीय
भाषाओं की अपेक्षा अधिक समृधॎध है । इसे बोलने और समझने िाले लोगों की
संख्या न के िल देश में सबसे अधिक है, बस्कक विश्ि की सिातधिक बोली जाने
िाली तीन भाषाओं में से एक है । इसका अमभप्राय यह भी नहीं है कक इसके
राष्र भाषा बन जाने से अन्य भारतीय भाषाओं का महत्ि कम हो जाएगा ।
हहंदी अगर राष्रभाषा बन जाती है तो अन्य भारतीय भाषाओं के सम्मान और
भूममका में भी िृवधॎध होगी और ये भाषाएं हहंदी की सहयोगी भाषा के ऱूप में
महत्िपूर्त योगदान करती रहेंगी ।
संवििान में हहंदी संबंिी भाषायी अनुच्छेदों में अनुच्छेद 351 सबसे
अधिक महत्िपूर्त उपबंि है स्जसमें कहा गया है कक संघ का यह कततव्य होगा
कक िह हहंदी भाषा का प्रसार बढाए, उसका विकास करे स्जससे िह भारत की
सामामसक संथक ृ तत के सभी तत्िों की अमभव्यस्क्त का माध्यम बन सके और
उसकी प्रक ृ तत में हथतक्षेप ककए त्रबना हहंदुथतानी में और आठिीं अनुसूची में
वितनहदतष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त ऱूप, शैली और पदों को
आत्मसात करते हए और जहां आिश्यक हो िहां उसके शब्द-भंडार के मलए
ु
मुख्यतः संथक ृ त से गौर्तः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहर् करते हए उसकी
ु
समृवधॎध सुतनस्श्चत करें । इस अनुच्छेद का लक्ष्य हहंदी को के िल संघ की
राजभाषा के थिऱूप के तनयोजन तक सीममतत नहीं रखना है, िरन ् भाषा-
व्यिहार क्षेत्र से जोडना है । हहंदी के राष्रीय थिऱूप का विकास करने के मलए
यह अनुच्छेद संवििान-तनमातताओं की आंतररक आकांक्षा को व्यक्त करता है