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समूचे देश की संपकत भाषा होने के कारर् थितंत्रता-संग्राम के दौरान हहंदी
की प्रासंधगकता को समझा गया और राष्र भाषा की अििारर्ा ने जन्म मलया ।
न के िल हहंदीभाषी संतों और आचायों ने जन-जन के हृदय तक हहंदी में अपना
संदेश पहंचाने का कायत ककया बस्कक दक्षक्षर् और हहंदीतर-भाषी आचायों और
ु
संतों का भी विशेष योगदान रहा है । दक्षक्षर् के रामानुज, रामानंद, विठॎठल,
िकलभाचायत, महाराष्र के नामदेि एिं ज्ञानेश्िर, गुजरात के नरसी मेहता तिा
थिामी दयानंद, असम के शंकर देि, पंजाब के गुरु नानक देि आहद आचायों
और संतों ने देश में जन-जन तक अपना संदेश पहंचाने और अपने ज्ञान का
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प्रसार करने के मलए हहंदी को अपना माध्यम बनाया । हहंदी की इस सरलता,
सहजता और सितदेमशकता के पररप्रेक्ष्य में काका कालेलकर ने कहा िा कक हहंदी
मसधॎधों की भाषा है, संतों की भाषा है और सािारर् जन की भाषा है स्जसकी
सरलता, सुगमता, सुघडता और अमरता थियं-मसधॎध है । हहंदी उत्तर से दक्षक्षर्
तक जोडने िाली सब से बडी कडी है । एक विदेशी अनुसंिानकतात एच. डी.
कोलबुक ने एक सौ िषत पूित एमशयाहटक ररसचत में मलखा िा कक स्जस भाषा का
व्यिहार भारत के प्रत्येक प्रांत के लोग करते हैं जो पढे-मलखे और अनपढ दोनों
की सािारर् बोलचाल की भाषा है और स्जसको प्रत्येक गांि में िोडे-बहत लोग
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समझ लेते हैं, उसी का यिाित नाम हहंदी है ।
एक शोि से जानकारी ममली है कक मुगल काल से पूित भी मुस्थलम
राज्यों में शाही र्रमानों में हहंदी का प्रयोग होता िा । यद्यवप मुगल काल में
र्ारसी राजभाषा हो गई िी कक ं तु यत्र-तत्र हहंदी का भी प्रयोग होता िा । एक
शोिकतात बुलाखमैन ने सन ् 1871 में कलकता ररव्यू में मलखा िा, मुगल
बादशाहों में शासन काल में ही नहीं, इससे पहले भी सभी सरकारी कागजात
हहंदी में मलखे जाते िे । थितंत्रता संग्राम के दौरान बंगाल, गुजरात, महाराष्र,
पंजाब, दक्षक्षर् भारत आहद हहंदीतर भाषी राज्यों के नेताओं, राजनेताओं,
साहहत्यकारों और समाज सुिारकों ने हहंदी को राष्रभाषा बनाने की मांग की ।
इनमें राजा राममोहन राय, के शिचंर सेन, सुभाष चंर बोस, थिामी दयानंद,
सरदार िकलभ पटेल, लोकमान्य ततलक, लाला लाजपत राय, सुब्रह्मण्यम भारती
आहद उकलेखनीय है । सन ् 1910 में हहंदीतर भाषी न्यायमूततत शारदा चरर् ममत्र
ने हहंदी साहहत्य सम्मेलन के अिसर पर प्रिम अधििेशन के अध्यक्ष पं. मदन
मोहन मालिीय को शुभ संदेश भेजते हए मलखा िा हहंदी समथत आयातितत की
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