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यह एक तानाशाही व्यिथिा है और तानाशाही व्यिथिा में मसर्त  भाषा को भ्रष्ट

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               ककया जाता  है  |”   इस  बाज़ाऱू  भाषा  से हहंदी  का  कोई  भला नहीं  हो रहा  है,
               बस्कक बाज़ार को ही लाभ ममल रहा है, जो उसका लक्ष्य है भी | भाषा तो तभी

               लाभास्न्ित होती है, जब िह अपनी जडों से जुडकर अपनी सांथक ृ ततक-बौवधॎधक-

               सजतनात्मक संपदा का संरक्षर् करती हो और उसे बढाती हो | परंतु बाजार ने

               अपने उपयोग के  मलए हहंदी को सबसे पहले उसके  मलखखत ऱूप से अलग ककया,

               उसे उसने मसित  बोलचाल की भाषा में बदल हदया, कर्र उस बोलचाल की भाषा

               को अपनी उपभोक्ता संथक ृ तत से जोडने के  मलए तोड-मरोडकर अनेक तरह की

               ममलािटों  से  बाजार की  भाषा  में  बदल  डाला  |  ‘हालत  यह  है कक  यह  समूची
               प्रकिया एक तरह के  मीडडया बाजार में तस्ब्दल हो गयी है और थियं मीडडया

                                                                                  6
               इकाइयां उस बाजार तंत्र का हहथसा मात्र होकर रह गई हैं |’
                       विश् ि  बाज़ार  की  नयी  स्थिततयों  में  यही  हहन् दी  भाषा  की  सबसे  बडी

               विडम् बना है | हहन् दी भाषा को उसके  मूल थ िभाि और आकांक्षा से दूर ककया

               जा  रहा  है  |  हहन् दी  के िल  माल  बेचने  की  भाषा  बन  रही  है  |  िह  के िल

               लालसाओं और म रीधचकाओं की भाषा बन रही है | िह एक ऐसे चमकीले संसार

               का हहथ सा बन रही है, स्जसका भारत की करोडों की संख् या में अक पमशक्षक्षत और

               मूक जनता से कोई संबंि नहीं | जनता इस स्थितत को के िल मुाँह बाये खडे

               देख रही है। भाषा को उसके  बुतनयादी संथ कार से काट देने में मीडडया की यह

               भूममका भविष् य में और अधिक बढते ही जाने की संभीिना है | भावषक प्रयोग

               में  जनता की अपनी  थ मृततयााँ जुडी  होती  हैं  |  भारत की  विशाल अक पमशक्षक्षत

               और  सािनहीन जनता खाते-पीते  िगत की  मथ ती, उपभोग  अय्याशी और  हहंसा

               को प्रततहदन टेलीविजन पर अपनी भाषा के  माध् यम से प्रकट होते देख रही है |

               यही विश् ि बाज़ार में आज हहन् दी की क ु ल भूममका है | हमें इससे तनपटने और

               बाहर आने के  राथते खोजने हैं |

                                                                     सहायक प्राध्यापक, हहंदी विभाग,

                                                                   राजथिान के न्रीय विश्िविद्यालय,
                                                                  बान्दरमसंदरी, ककशनगढ – 305801


                                                                             स्जला-अजमेर (राजथिान)
                  िंदभष िूची :
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