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सीिी-सादी  भाषा  में  मलखी  गई  इस  विज्ञापन  कॉपी  ने  अपने  भािनात्मक

               काव्यात्मक  अंदाज़  में  हर  हदल  को  छ ू   मलया  |    ‘ठंडा  मतलब  कोका  कोला’,

               ‘वपयो मसर उठा के ’, ‘सच हदखाते हैं हम’, ‘ये हदल मांगे मोर’, ‘दाग अच्छे हैं’,

               ‘ये प्यास है बडी’ जैसी पंस्क्तयों ने हहंदी की लोकवप्रयता बढा दी | आज ‘मीडडया

               की भाषा एक ऐसी हहंदी है स्जसके  पास ‘ममस्क्संग कै वपमसटी’ ममलाकर पचा लेने

               की क्षमता है | भाषा में एक लचीलापन (Flexibility) है | यह अंग्रेजी के  साि-

               साि प्रांतीय भाषाओीँ को अपने में ममलाकर, उसे अपना रंग और थिाद देकर
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               अपना बना लेती है | मीडडया की भाषा अब व्यिहार की भाषा है |’  आधितक

               उदारीकरर् की नीततयों ने विशेषतः मध्यिगत में एक नया भरोसा जगाया है |
               औपतनिेमशक जकडबंहदयों को तोडकर अपनी अस्थमता और अपनी भाषा के  प्रतत


               िे आज अधिक आश्िथत महसूस करते हैं |
                       ‘बाजार का ममजाज बदलता है तो विज्ञापनों की िीम प्रथतुतत के  तरीके

               भी बदलते हैं | विज्ञापनों के  मलए कापी तैयार करने का अभ्यास करने िालों के

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               मलए ऐसे विज्ञापनों का पढना बडे महत्त्ि का काम है |’  वपछले एक दशक में
               साबुन और टूि पेथ ट जैसी सथ ती सामग्री से कहीं आगे जाकर अब उपभोक् ता

               विज्ञापन  मोटर  साइककल,  कार,  कफ्रज,  टीिी,  िामशंग  मशीन,  महंगी  प्रसािन

               सामधग्रयों,  कीमती  िथ त्रों,  बचत  और  तनिेश  की  योजनाओं  आहद  के   मलए  भी

               हहन् दी में बन रहे हैं | छोटे-छोटे गााँि में ककसी सडक के  चौराहे पर अब आप

               िामशंग मशीन या कफ्रज के  हहन् दी में बनी होडडिंग् स देख सकते हैं  | भारत में

               उपभोक् ता िथ तुओं के  बाज़ार का विथ तार हो रहा है | उपभोक् ता िथ तुएाँ प्रांतीय

               राजिातनयों और प्रिम श्रेर्ी के  शहरों से आगे तनकलकर मध् यम दजे के  शहरों,

               नींद में अलसाये कथ बों और दूर-दराज के  गााँिों तक पहाँच रही हैं | छोटे-छोटे
                                                                                 ु
               कथ बों में ब् यूटी पालतर खुल रहे हैं |  रेबेन के  चश् मे पहने कथ बाई युिक इतरा

               रहे हैं | दूसरे दजे के  रेल यात्रत्रयों के  लगेज की शक् लें बदल रही हैं | दूर-दराज

               के   इलाकों  में  बैंकों  के   िे डडट  काडत  और  'एटीएम'  सेंटर  खुल  रहे  हैं  |  आज

               उपभोक् ता सामग्री बनाने िाली बहत सी बहराष् रीय कं पतनयााँ िथ तुओं के  साि
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                                                                  ु
               हदये जाने िाला मलटरेचर हहन् दी में भी छाप रही हैं | पर यह तथ िीर का एक

               पहलू है | विश् ि बाज़ार की शस्क्तयों द्िारा भारत में एक माध् यम के  ऱूप में
               हहन् दी का यह इथ तेमाल भारतीय समाज में पररिततन की मूलगामी शस्क्तयों के

               बारे में हमें आश् िथ त नहीं करता | बस्कक इस सारी प्रकिया में हहन् दी भाषा की
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