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प्रयोक्ताओं और शब्दकोश की संख्या उतनी ही बढ जाएगी और भाषा भी समृधॎध

               हो जाएगी।

                       ककसी भी देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के  मलए उसकी

               एक राजभाषा का होना अतनिायत होता है। िह भाषा स्जसमें राजकाज होता हो,

               देश के  बहसंख्यक लोगों द्िारा बोली जाती हो, राजभाषा कहलाती है। राजभाषा
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               से प्रत्येक मनुष्य, समाज और राष्र एकता के  सूत्र में आबधॎध रहते हैं। इसके

               द्िारा ही सभी देशिामसयों के  मनोमस्थतष्क में सहकाररता की भािना का उदय

               होता है।

                       हहंदी  भाषा  के   मभन्न-मभन्न  ऱूपों  में  अनेक  मुस्थलम  कवि  लेखकों  ने
               साम्रयातयक  एकता  का  संदेश  देकर  राष्र  को  एक  सूत्र  में  बांिा।  ऐसे


               साहहत्यकारों  में  मुख्यतः  अमीर  खुसरो,  क ु तुबन,  मंझन,  ममलक  मोहम्मद
               जायसी,  उसमान,  शेख  निी,  अब्दुरतहीम  खानखाना,  रसखान,  आलम,  रसलीन,

               मुकला  दाउद,  मुंशी  अजमेरी,  इंशा  अकला  खां  और  कामसम  अली  हए।  इन
                                                                                                 ु
               साहहत्यकारों की हहंदी सेिा और राष्र सेिा के  अमभभूत होकर आिुतनक हहंदी के

               जन्मदाता भारतेंदु हररश्चन्र ने कहा िा कक-‘‘इन मुसलमान हररजनन पै कोहटन

               हहंदू िाररए।’’

                       देश  के   सभी  प्रांतों  के   समाज-सुिारकों,  संत  और  राजनीततज्ञों  ने  हहंदी

               भाषा के  महत्ि को समझ मलया िा। महाराष्र में जहां ग्यारहिीं तिा बारहिीं

               शताब्दी में मराठी के  आहद-कवि मुक ुं दराज और संत ज्ञानेश्िर ने इसके  महत्ि

               को समझा िा िहां कालांतर में गोपाल नरहरर देशपांडे तिा के शि िामन पेठे

               नामक महानुभािों ने िमशः सन ्  1875 तिा 1876 में हहंदी को राष्रभाषा के

               ऱूप में प्रततस्ष्ठत कराने का अमभनंदनीय प्रयास ककया िा। महादेि गोविंद रानाडे

               तिा लोकमान्य बाल गंगािर ततलक ने भी इस हदशा में प्रशंसनीय कायत ककया।

               गुजरात के  कच्छ प्रदेश के  राजा लखपतत महाराज ने अठारहिीं शती में भुज में

               ब्रजभाषा की एक पाठशाला खोलकर हहंदी के  प्रचार की जो नींि डाली िी। इसके

               पररर्ाम यह रहे कक िहां िीरे-िीरे इतनी सर्लता प्राप्त हई कक महात्मा गांिी
                                                                                  ु
               तिा  थिामी  दयानंद-  जैसे  सुिारकों  को  हहंदी  के   महत्ि  को  समझकर  उसके


               प्रचार  में  लगना  पडा।  जहां  ये  सुिारक  तिा  राजनेता  हहंदी  की  महत्ता  को
               समझकर उसके  प्रचार में लगे हए िे िहां नरसी मेहता, मालर्, दयाराम तिा
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