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आहद ने भी अपने पत्रों में हहंदी की राष्रभाषा संबंिी क्षमता को मुक्त कं ठ से

               थिीकार  ककया  िा।  सुप्रमसधॎध  तत्ि-धचंतक  श्री  अरविंद  घोष  ने  भी  अपने

               ‘कमतयोगी’ और ‘िमत’ नामक पत्रों के  माध्यम से राष्रभाषा हहंदी के  उन्नयन में

               अपना अनन्य सहयोग देने में महत्िपूर्त भूममका का कायत ककया िा।

                       जब बंग देश में उक्त सुिारक, विचारक और धचंतक हहंदी-संबंिी आंदोलन

               को आगे बढा रहे िे िहां भूदेि मुखजी त्रबहार में तिा निीनचंर राय पंजाब में

               हहंदी-प्रचार का कायत कर रहे िे। प्रकाशन और मुरर् के  क्षेत्र में भी बंगभावषयों

               की सेिाएं अविथमरर्ीय हैं। श्री रामानंद चटजी ने अपने प्रिासी प्रेस से जहां

               ‘विशाल  भारत’  जैसा  उच्चकोहट  का  मामसक  पत्र  तनकाला,  िहां  श्री  धचंतामखर्
               घोष के  इंडडयन प्रेस ने ‘सरथिती’ का प्रकाशन करके  हहंदी-भाषा और साहहत्य


               की अमभिृवधॎध में अभूतपूित योगदान हदया। यह बंगाल के  ही सपूत श्री नागेंरनाि
               बसु को श्रेय हदया जा सकता है कक उन्होंने 25 खंडों में विश्िकोश प्रकामशत

               करके   हहन्दी-साहहत्य  की  अमभिृवधॎध  की  िी।  अनेक  बंग-नेताओं  द्िारा  जहां

               राष्रभाषा के  प्रचार-प्रसार में योगदान की हदशा में ऐसे महत्िपूर्त कायत हो रहे

               िे, िहां जस्थटस शारदाचरर् ममत्र ने ‘एक मलवप विथतार पररषद्’ की थिापना

               करके  उसके  द्िारा ‘देिनगर’ नामक ऐसा पत्र प्रकामशत ककया िा कक स्जसका

               उद्देश्य देिनागरी मलवप के  माध्यम से समथत भारतीय भाषाओं की क ृ ततयों को

               प्रकामशत करके  उनमें समन्िय थिावपत करता िा। उनका यह भी अमभमत िा

               कक यहद भाषाओं में से मलवप की दीिार को हटा हदया जाए और सब भाषाओं

               को ‘देिनागरी’ मलवप में ही मलखने की परंपरा चल पडे, तो भारत की एकता

               अखंड रह सके गी। िाथति में यहद मलवप की बािा को दूर कर हदया जाए और

               सारे देश की भाषाएं ‘देिनागरी’ को अपना लें तो हमारी सांथक ृ ततक, सामास्जक

               और साहहस्त्यक चेतना को बडा बल ममल सके गा और एक मलवप के  माध्यम से

               हमारी एकता सितिा के  मलए अक्षुण्र् रह सके गी।

                       इस  प्रकार  उपयुतक्त  वििेचन  से  थपष्ट  है  कक  हहंदी  भारत  की  राजभाषा

               और राष्रभाषा के  साि साि िषों से भारत के  अंतस की भाषा रही है। उसमें
               सांथक ृ ततक और राष्रीय एकता की अनूठी शस्क्त है। राष्रीय एकता के  सूत्र के


               मलए स्जस भाषा के  सूत्र में बंिकर भारत को अंग्रेजी दासता से आजादी ममली
               िह हहंदी िी। महात्मा गांिी राजा राममोहन राय और थिामी दयानंद सरथिती
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