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उत्तरः- यह सही है कक कमी है लेककन अभी भी हम उस जमाने में स्जंदा


               है कक ककसी के  कान में कह हदया जाए कक हमें एक कार लेनी है कर्र आप

               पायेंगे कक एक से एक नई-नई कारें प्रथतुत करने के  मलए कार िालों की भीड

               जमा  हो  जाएगी  और  िो  उस  कार  के   साि  तमाम  तरह  के   ऑर्र  भी  हमें


               प्रथतुत  करेंगे  ।  यहीं  हाल  साहहत्य  में  भी  है  कक  मान  लीस्जए  पस्ब्लके शन  से

               ककताब छपी और बैठे हए हैं तो ककताब कहां से त्रबके गी । लेककन जो पस्ब्लक
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               चाहती है ककताब िैसी ही छपी तो ककताब बहत त्रबकती है । ककताबों के  क्षेत्र में
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               भी िही होना चाहहए कक प्रकाशक पढने िालों तक पहंचे । दोनों ही तरह से
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               ककताबों की त्रबिी बढायी जा सकती है । दूसरी ओर कई बार पाठक सोचते हैं

               कक ककताब िाला उसके  घर पर ककताब देने आयें लेककन हम यह भूल जाते हैं


               कक  ज्ञान  प्राप्त  करना  हमारी  आिश्यकता  है  ।  मैं  आपको  लाहौर  का  एक

               उदाहरर् देता हं । मेरे ममलनेिाले एक शायर है जो बहत ही रंगीतनयत के  साि
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                                                                              ु
               शायरी मलखते हैं तो मैंने उनसे पूछा कक आप की ककताब तो खूब त्रबकती होगी

               ।  उन्होंने  हमें  अपने  पुथतकालय  में  ले  जाकर  हदखाया  कक  ककस  प्रकार  िहां

               ककताबें बेची जाती हैं । उन्होंने हमें हदखाया कक उनके  पास ऐसा डाटाबेस है,


               बहत सारे लोगों का डडटेल है जैसे ममथटर एक्स क्या पढते हैं । दूसरे शायरी
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               पढते हैं या कविता पढते हैं या कहानी पढते हैं  । ये लोग कहां रहते हैं आहद-


               आहद । जैसे ही उनकी शायरी की ककताब छपी उन्होंने डाटा बैंक से उनलोगों के

               नाम पता तनकाले और एक-एक पुथतक उनके  पते पर मभजिा दी । िोडे हदनों

               के  बाद उनको पुथतकों का मूकय प्राप्त हो गया । इस प्रकार शायद एक पुथतक


               अधिक से अधिक लोगों तक पहंच सकती है ।
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               प्रश्नः- आपकी मनपसंद वििा कौन सी है ।



               उत्तरः- मैं भाषा की बात कऱूं  तो आसानी से मैं उदूत में मलख पाता हं लेककन
                                                                                                 ू
               वििा की बात कऱूं  तो मैंने शायरी समझने की कोमशश की पर कई बार उसको


               गजल में बांिना मुस्श्कल होता है तो मैं जैसा समझ आता हं िैसा मलख देता हं
                                                                                                          ू
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               बाकी वििा तय करना पाठकों का काम है ।
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